मरहठा छंद
10/8/11
तुम हिंदुस्तानी, मीठा पानी, मधुर भाव से स्नेह।
भीतर बाहर से, सदा स्वच्छ हो, कुटिया अनुपम गेह।
जो चोरी करता, पापी बनता, सहता है अपमान।
जो हर प्राणी को, गले लगाता, रचाता हिंदुस्तान।
जो हिंदुस्तानी, खुद सम्मानी, रखता सबका ख्याल।
रक्षक का भावन, निर्मल पावन, मन में नहीं मलाल।
सेवा है मन में, ऊर्जा तन में, दया भाव ही धर्म।
सबका सहयोगी, बनना अच्छा, लगता जिमि सत्कर्म।
Gunjan Kamal
16-Nov-2022 08:28 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Raziya bano
11-Nov-2022 06:39 AM
Nice
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Sachin dev
10-Nov-2022 07:44 PM
Nice
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